सोमवार, 28 सितंबर 2009

भाषा के साथ संस्कार भी बदलते हैं: राहुल देव


नई दिल्ली, 24सितंबर: भारतीय जन संचार संस्थान में ‘हिन्दी का भविष्य बनाम भविष्य की हिन्दी’ विषय पर आयोजित संगोष्ठी में देश के जाने-माने संपादकों ने अपने विचार रखे। सी.एन.ई.बी न्यूज़ चैनल के सीईओ और प्रधान संपादक राहुल देव, नई दुनिया के राष्ट्रीय संपादक मधुसूदन आनंद, दैनिक भास्कर के समूह संपादक श्रवण गर्ग और आज़तक के समाचार निदेशक क़मर वहीद नक़वी इस मौके पर उपस्थित थे। हिन्दी के भविष्य को लेकर इनमें से कुछ चिंतित थे तो कुछ उम्मीदों से भरे हुए दिखे। संगोष्ठी की अध्यक्षता संस्थान के वरिष्ठ शिक्षक प्रो.के.एम.श्रीवास्तव ने की और संचालन हिन्दी पत्रकारिता के पाठ्यक्रम निदेशक डॉ.आनंद प्रधान ने किया।
बीज वक्तय रखते हुए सी.एन.ई.बी न्यूज़ चैनल के सीईओ और प्रधान संपादक राहुल देव ने ख़तरे की घंटी बजाई। उनका कहना था कि अगर हिन्दी की यही हालत रही तो 2050 तक भारत लिखाइ और पढाई के सारे गंभीर काम अंग्रेज़ी में कर रहा होगा और हिन्दी सिर्फ मनोरंजन की भाषा बनकर रह जाएगी। उन्होनें कहा कि किसी भी भाषा के बदलने से उस भाषा को बोलने वालों के संस्कार भी बदलते हैं। राहुल देव की बात को निराशाजनक बताते हुए नई दुनिया के राष्ट्रीय संपादक मधुसूदन आनंद ने कहा कि बदलते समय और तकनीक के साथ हिन्दी को भीबदलना ही होगा वरना इसे खत्म होने से कोई नही बचा पाएगा। उन्होने कहा कि अगर अंग्रेज़ी के कुछ शब्द हिन्दी में आ रहे हैं तो उन्हें रोकना नही चाहिए।
इस अवसर पर दैनिक भास्कर के समूह संपादक श्रवण गर्ग ने कहा कि भविष्य में वही हिन्दी चलेगी जो सरल होगी और आसानी से समझ में आने वाली होगी। उन्होनें कहा कि अंग्रेज़ी के शब्दों के आने से उसका वर्चस्व नहीं हो पाएगा बल्कि उससे हिन्दी और समृद्ध होगी। भविष्य की हिन्दी पर अपने विचार रखते हुए आज़तक के समाचार निदेशक क़मर वहीद नक़वी ने कहा कि भाषा में बदलाव और शब्दों का लेनदेन स्वभाविक है। उन्होनें इस बात को एक हद तक सही बताते हुए कहा कि भाषा का बदलाव ऐसा नही होना चाहिए कि उसके संस्कार ही खत्म हो जाए। उन्होनें कहा कि भाषा को पानी की तरह होना चाहिए, उसे जिस बरतन में रखा जाए उसी का रूप ले ले। संगोष्ठी का समापन प्रश्नकाल के साथ हुआ जिसमें इन संपादकों ने संस्थान के विधार्थियों के प्रश्नों के उत्तर दिए।

12 टिप्‍पणियां:

Chandan Kumar Jha ने कहा…

सुन्दर आलेख ।

गुलमोहर का फूल

Unknown ने कहा…

rahul dev ki bhasha vaise bhi 50 saal purani hai.

ब्लॉ.ललित शर्मा ने कहा…

savagat hai, bahut hi achchha lekhan hai, nirnatarata rakhe,

निर्मला कपिला ने कहा…

ांच्छा विवरण है बधाई

Badal ने कहा…

शशि जी ये तो न्यूज़ है इसमें आपके विचार कहाँ हैं? अच्छा होता सारी जानकारी के बाद आप अपना मत भी दे देते. चलिए कोई बात नहीं इन विद्वानों को बोलने दीजिए और बाकी सब के बारे में हमलोग परिचित हैं ही. मुझे तो लगता है यहाँ भी भाषा के प्रयोग का सारा मामला अपने चैनल या समाचारपत्र को शीर्ष पर पहुँचाने के लिए ही है. बाकी राहुल देव अगर भाषा को लेकर इतने भावुक हैं तो ये उनके चैनल में क्यों नहीं दिखाई देता है? उसके सारे कर्ता-धर्ता तो वही हैं. रही बात नकवी जी की तो उन्होंने पहले प्रयोग किया, भाषा को एक ऊंचाई दी तब जाकर बात कर रहे हैं. भाषा के निर्माण का काम अब हमारे हाथों में ही है इसलिए कृपया पोस्ट करने से पहले आप भी एक बार अपनी भाषा की अशुद्धियाँ दूर कर लेंगे तो ज्यादा बढ़िया रहेगा. अन्यथा मत लीजिएगा.....

वन्दना अवस्थी दुबे ने कहा…

सुन्दर आलेख बधाई.

Udan Tashtari ने कहा…

बढ़िया आलेख. आभार आपका!

Sanjay Grover ने कहा…

हुज़ूर आपका भी एहतिराम करता चलूं.........
इधर से गुज़रा था, सोचा, सलाम करता चलूं....

Jayram Viplav ने कहा…

भाषा तो संवाद कायम करने का जरिया है जिसमें समय के साथ बदलाव होना नितांत है .बदलाव से डरने की बात नहीं . हिंदी विकास की राह पर है . आज हिंदी संयुक्त राष्ट्र तक अपनी पहुँच रखती है और विश्व की सर्वाधिक बोली जाने वाली दूसरी सबसे बड़ी भाषा है .

रामकुमार अंकुश ने कहा…

ब्लॉग जगत को बहुत सी अपेक्षाएं हैं आपसे...

चन्दन कुमार ने कहा…

बहुत बढ़िया लिखा,गुरू. ऐसे ही भाषा के साथ संस्कार बदलता है, जहां तक मीडिया का सवाल है यहां सबकुछ बदलजाता है. भाषा एक नया अर्थ ही ग्रहण कर लेती है.

गोविंद गोयल, श्रीगंगानगर ने कहा…

---- चुटकी----

करवा चौथ का
रखा व्रत,
कई सौ रूपये
कर दिए खर्च,
श्रृंगार में
उलझी रही,
घर से भूखा
चला गया मर्द।