बहते थे कभी मेरे भी नीर
सूख चुके अश्रु नयनों के
शुष्क पड़े हैं दोनों तीर।
कोई कहता निष्ठुर हो गया
कोई कहता निर्मोही
कंटक सी चुभती ये बातें
करतीं अंतर्मन को अधीर।
हृदय में अंकित शोक-संतापों को
कौन किसे अब समझाए
बिन अश्रुजल के वो निरीह प्राणी हैं
जो सहन करता है सबकुछ मौन,गंभीर॥
कोई कहता निष्ठुर हो गया
कोई कहता निर्मोही
कंटक सी चुभती ये बातें
करतीं अंतर्मन को अधीर।
हृदय में अंकित शोक-संतापों को
कौन किसे अब समझाए
बिन अश्रुजल के वो निरीह प्राणी हैं
जो सहन करता है सबकुछ मौन,गंभीर॥
4 टिप्पणियां:
wah kya baat hai ..sach me neer ki koi gati nahi ...naa hi koi paka smaey hai.jai ho
wah! bahut hee jandar, narayan narayan
अच्छी रचना, स्वागत ब्लॉग परिवार में.
ati uttam
ankhon ke kor se ashru dhara yun avichalit bahti rahi apki rachnayi jad dard bayan kar rahi thi
dhnyvaad itni khubsurat rachnaoon ke liye
apki dost ........
vartika
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