अगर लोगों से पूछा जाए की ओबामा के कुत्ते का नाम क्या है या कि अभी कौन सी हिरोइन ज्यादा चर्चा में है तो इन सवालों के जवाब देने के लिए शायद ही उन्हें सोचना पड़े। लेकिन सवाल को थोड़ा टेढ़ा कर दिया जाये, मसलन, अभी लैटिन अमेरिका में क्या हो रहा है या श्रीलंका की वर्तमान स्थिति क्या है तो लोग सर खुजाने लगेंगे। इस बात के लिए शायद लोग उतने जिम्मेवार नहीं हैं जितना कि मीडिया। लोगों को जो बात दिखाई जायेगी उन्हें वही बात याद रहेगी। कारण शायद वही है कि 'बो(ओबामा का कुत्ता)' और राखी सावंत के सामने लैटिन अमेरिका या श्रीलंका उतनी टीआरपी नहीं दे पाएंगे।
आज जब हर चीज़ पर आत्मचिंतन हो रहा है तो मीडिया को इससे अलग क्यों किया जाए? आज के इस दौर में जब ख़बर देने वाले ख़बर बनाने लगे हैं तो उनके चरित्र का मूल्यांकन क्यों न हो? पत्रकारिता के मिशन कि बात आउटडाटेड हो चुकी है, यह सच्चाई सभी लोग मान चुके हैं, परन्तु बची-खुची शर्म-हया और सामाजिक सरोकार को यूँ ही घोलकर पी जाना कहाँ कि बुद्धिमानी है?
आज मीडिया ज्यादा शक्तिशाली हो चुका है, लेकिन शक्ति के गरूर में वो यह बात भूलता जा रहा है कि " Great Power Comes With Great Responsibilities"।
श्रीलंका में सेना ने लिट्टे के खिलाफ़ फिर से मोर्चा खोल दिया है। हाल में वहां सेना और लिट्टे के संघर्ष में हज़ारों लोग मारे जा चुके हैं. इसमें ज्यादातर निर्दोष ही शामिल हैं. यहाँ पर सवाल यह है कि इस खूनी लड़ाई कि सही तस्वीर कितने लोगों तक पहुची है? हमारे चैनलों और प्रिंट मीडिया ने इस संघर्ष कि कितनी जानकारी दी है? शायद कम ही लोग यह जानते होंगे कि वहां पर कई बच्चों के सर उड़ा दिए गये हैं, कारण सिर्फ इतना था कि वो तमिल बोलते थे. एक महिला को उसके ८ साल के गर्भ के साथ मार दिया गया. क्यों? सरकार और सेना सभी तमिलों को लिट्टे का समर्थक मान चुकी है. यह सच्चाई क्या सबको पता है? इस घटना कि कई वीभत्स तस्वीरें मीडिया में छुपाई गयीं हैं. लगभग २०,००० से ज्यादा नागरिक युद्ध में फंसे हुए हैं और बेघर हैं. आखिर क्यों? समुदाय के नाम पर हिटलर की गाथा को दुहराया जा रहा है और लोग इससे बेखबर हैं।
हमारी मीडिया ने इक्का-दुक्का ख़बरों को चलाकर अपने काम कि इत्तिश्री मान ली। संभवत श्रीलंकन सरकार पत्रकारों को अन्दर तक जाने कि इजाज़त नहीं दे रही, लेकिन सवाल यह है कि कहाँ गए वो खोजी पत्रकार जो कभी अपनी जान पर खेलकर खबरें लाते थे? क्या मीडिया अब अपने ही बनाए घेरे में कैद हो चुकी है? यहाँ मै एक चीज़ कहना चाहता हूँ कि जिस अरुंधती रॉय पर कश्मीर के खिलाफ़ लिखने पर जूता चलाया गया उन्होंने निश्चित तौर पर इस मामले में बहुत अच्छी रिपोर्टिंग की है।
मीडिया ने सच्चाई को दरकिनार कर फ़ालतू की खबरें दिखाईं थी, मसलन, तमिलनाडु में इस मुद्दे से फैले असंतोष, सरकार गिराने की धमकी आदि। ख़बरों को छिपाने के लिए वही हथकंडा अपनाया गया जो तहलका काण्ड के समय किया गया था। दरअसल आज मीडिया अपने लिए तय न्यूनतम पैमाने से भी नीचे जा गिरा है। सामाजिक सरोकार और जनहित की बात आज टीआरपी के विशाल बरगद के नीचे खड़े उस छोटे पौधे के समान है जिसका आस्तित्व बरगद के सामने बौना हो जाता है।
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9 टिप्पणियां:
आप के लिखने के तरीके से मै प्रभावित हू।पर आपने अरंधुति राय के बारे में कहा है कि उन्होंने काश्मीर के बारे में सही रिपोर्टींग की है(उन्होने कहा कि काश्मीर पाकिस्तान को दे दिया जाना चाहिये)मै सहमत नहीं हू।
भाई साहब, लोग जो देखना चाहते हैं, मीडिया वही दिखाती है. और हां, लोगों का लैटिन अमेरिका से क्टा लेना-देना। अगर लोगों को मीडिया का टेस्ट बदलना है तो पहले उन्हें ख़ुद का टेस्ट बदलना होगा, बजाए मीडिया को कोशने के।
प्रशांत जी, शायद आपने ध्यान से लेख नहीं पढ़ा. मैंने अरुंधती रॉय का हवाला देकर यह कहा है की उन्होंने श्रीलंका के मुद्दे पर अच्छा लिखा है न की कश्मीर के मुद्दे पर.
चन्दन जी, माफ़ी चाहता हूँ लेकिन ओबामा के राष्ट्रपति बनने से पहले भारत में कितने लोग उन्हें जानते थे? मीडिया ने जबरदस्ती ठूंस-ठूंस कर हमें ओबामा नाम का डिश खिलाया और हमने खा लिया.
गुरूदेव, यही तो बात है!
फिर ओबामा को लोग देख क्यों रहे हैं. टी.वी. बंद क्यों नहीं कर देते जब ओबामा स्क्रीन पर आता है, उस पर चलने वाले सारे प्रोग्राम हिट हुए, तो इसलिए कि लोगों ने देखना चाहा। बो का किस्सा सामने है। फिर भी दोष मीडिया पर। चलिए अपनी ग़लती मानते हैं, फिर आपके पास सबसे बड़ा हथियार है, रिमोट बदल दो चैनल, लेकिन ऐसा नहीं करोगे देकना भी है और गाली भी देना है.
जी, मै भी तो यही कहना चाहता हूँ. पहले मीडिया(खासकर टेलीविजन) किसी भी कार्यक्रम में सनसनी का पुट मिलाकर उसे ऐसे प्रस्तुत करती है की दर्शक देखने पर मजबूर हो जाते ही हैं. वैसे आपने हिट की बात कही है तो मेरे विचार से शायद आपको पता ही होगा की यहाँ प्रोग्राम कैसे हिट होते हैं. रेटिंग कैसे होती है आप बखूबी जानते होंगे.
भाई सनसनी की बात कर रहे हैं, ओबामा के प्रोग्राम में क्या सनसनी हो सकती है। एक बात मैं साफ़ कहना चाहुँगा, आप किसी को दोष नहीं दे सकते अगर आप ख़ुद अपने गिरेबां में झाकते। ख़ासकर हिंदुस्तान में लोकतंत्र है, मगर लोग अलोकतांत्रिक, अरे भाई आपके पास रिमोट है चैनल बदल लो, वोट देने की ताकत है सरकार बदल दो, लेकिन नहीं हम ऐसा नहीं करेंगे और घर बैठे ग़ाली देंगे सिस्टम को ।
चन्दन जी, अब मै क्या बोलूं. आपने कहा की ओबामा की न्यूज़ में सनसनी कहाँ? क्या आपको नहीं लगता की ओबामा ने जिस परिवर्तन का नारा दिया मीडिया ने उसी को सनसनी बना दिया? बाकी परिवर्तन तो आप देख ही रहें हैं. और हाँ, जहाँ तक रिमोट की बात है तो आप जानते होंगे की यहाँ सारा फैसला रिमोट ही तय नहीं करता.
baat to aapki bilkul sahi hai badal ji...par sawal sirf trp ka hi nahi hai.....sawal to kai sare hain jo ujagar hi nahi hote.....bus itna samajh lijiye ki vo jamane beet gaye jab patrakarita mission hua karti thi.....ab to yahan ek hi kahawat lagu hoti hai ki...GHODA GHAS SE DOSTI KAREGA TO KHAYEGA KYA.............
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