सोमवार, 6 अप्रैल 2009

राजनीति बनाम सामाजिक कार्यकर्ता

उत्तर प्रदेश के सोनभद्र जिले की मानवाधिकार कार्यकर्ता रोमा मलिक ने वरुण गाँधी पर राष्ट्रीय सुरक्षा कानून लगाए जाने का समर्थन किया है। रोमा मलिक सन् २००० से एक संस्था चला रही हैं जिसका नाम है- नेशनल फोरम ऑफ़ फॉरेस्ट पीपुल एंड फॉरेस्ट वोर्केर्स। इनकी संस्था का काम है लोगो में राजनितिक समझ को पैदा कर समाज में होने वाले भ्रष्टाचार को ख़त्म करना। बहरहाल, वरुण गाँधी पर यह कानून लगाया जाना उचित है या नहीं इसपर राजनीतिक विद्वान् पहले ही काफी टिपण्णी कर चुके हैं। यहाँ गौर करने लायक बात यह है कि एक मानवाधिकार कार्यकर्ता के दृष्टिकोण में भी वरुण पर लगा यह प्रतिबन्ध सही है।

अगर हम सिर्फ रोमा जी के समर्थन की बात करें तो मामला सिर्फ दृष्टिकोण और अपने नज़रिए को प्रस्तुत करने जैसा प्रतीत होता है। यह सही है की कोई भी व्यक्ति समाज में अपनी निजी राय प्रस्तुत कर सकता है। परन्तु अगर उनके तर्क पर गौर किया जाये तो कुछ प्रश्न निकलकर सामने आते हैं। सबसे पहले उनका तर्क देखिए-
" वरुण पर राष्ट्रीय सुरक्षा कानून लगाए जाने का मैं समर्थन करती हूँ। बीजेपी के नेताओं को ऐसे कड़े कानूनों का पता चलना चाहिए जिसका वे समर्थन करते हैं। छत्तीसगढ़ में मानवाधिकार कार्यकर्ता विनायक सेन को ऐसे ही कानूनों के तहत लम्बे समय से जेल में रखा गया है। अब वरुण गाँधी पर जब रासुका लगा तो बीजेपी नेता घड़ियाली आंसू क्यों बहा रहे हैं?"

पहली नज़र में यह बयान किसी राजनीतिक पार्टी का लगता है। परन्तु एक मानवाधिकार कार्यकर्ता ने ऐसा बयान दिया है, सोचने लायक है। अब यहाँ ये प्रश्न उठते हैं कि कोई भी समाज एक मानवाधिकार कार्यकर्ता से क्या उम्मीदें कर सकता है? क्या वह कार्यकर्ता सिर्फ मनुष्यता के नाते लोगों के अधिकारों की बात करता है या वह पूर्वाग्रह ग्रसित भी होता है? सामाजिक द्वन्द और तेजी से बढ़ते मानवाधिकार हनन के इस दौर में क्या हम इनसे ज्यादा की अपेक्षा कर बैठे हैं? और एक यक्ष प्रश्न की, क्या ये कार्यकर्ता सिर्फ समाज में अपनी पहचान बनाने के लिए ही मानवाधिकारों की दुहाई देते फिरते हैं? इन प्रश्नों पर विचार करना अब जरुरी हो गया है।

छत्तीसगढ़ में बीजेपी ने विनायक सेन के साथ जो किया है वो बहुत दुखद और निंदनीय है। शायद ही कोई बीजेपी के इस कारगुजारी को सही कहेगा। परन्तु क्या रोमा जी सिर्फ इसी आधार पर, वरुण गाँधी के साथ हुए अन्याय को सही ठहरा सकती हैं? हो सकता है बीजेपी के लिए उनके मन में गहरा क्रोध हो और वो सही भी हो सकता है, परन्तु उसी पैमाने पर सभी चीजों को तौलना सही है? एक पार्टी के आधार पर उसके कार्यकर्ता के साथ हुए अन्याय को सही कहना बिलकुल ठीक नहीं है। मानवाधिकारों के हनन का फैसला मनुष्यता के आधार पर होता है, पार्टी के आधार पर नहीं। वैसे आपकी जानकारी के लिए बता दें की रोमा जी पर भी राष्ट्रीय सुरक्षा कानून लगा हुआ है। अपने साथ हुए अन्याय को देखकर भी वो अन्याय को समझ नहीं पा रहीं हैं।

रोमा जी को यह बताना चाहिए की वो मानवाधिकारों की जो लडाई लड़ रही हैं क्या उसके लिए सिर्फ़ मानव भर होना जरुरी नहीं है? या फिर किसी के आधिकारों को दिलाने के लिए वो उसकी पार्टी,धर्म आदि चीजों को भी देखती हैं। वरुण गाँधी ने जो कहा गलत था और रासुका लगाना उससे भी गलत। रोमा जी को भी यह जानना चाहिए की बतौर एक सामाजिक कार्यकर्ता, उनके लिए वरुण पहले एक आम इंसान हैं बीजेपी के उम्मीदवार बाद में।

1 टिप्पणी:

chandan ने कहा…

बिल्कुल सही मेरा मानना है कि आज के ज्यादातर मानवाधिकार कार्यकर्ता
मानव अधिकारों की चिंता के अलावा बाक़ी सभी बातों की चिंता करते हैं. मसलन
वो राजनीतिक बयानबाजी करेंगे, ज़मीनी स्तर से जुड़ने की जगह लेट नाईट पार्टियों में शाराब बाज़ी करेंगे
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और दिन में बात करेंगे मानव अधिकारों की, क्योंकि उनकी रोज़ी-रोटी उसी से चलती है!!!!!!!!!!!