एशिया भर में मॉस कम्युनिकेशन के लिए सबसे बड़ी लाइब्रेरी का तमगा हासिल करने वाली आईआईएमसी( इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ मॉस कम्युनिकेशन) की लाइब्रेरी कई खामियों से ग्रसित है। अव्यवस्था का आलम यह है की यहाँ पिछले सात साल से लाईब्ररियन का पद ही खाली पड़ा है। वैसे तो संस्थान की लाइब्रेरी में और भी कई खामियां हैं लेकिन यह समस्या बहुत ही बड़ी है। ऐसा अगर चंद दिनों या महीनों से होता तो कोई बात नहीं थी लेकिन सात साल तक एक प्रीमिअर संस्थान में( जिस संस्थान को सूचना और प्रसारण मंत्रालय चलाता हो उसमें) इस तरह की बात सामान्य नहीं कही जा सकती है। तिस पर संस्थान का प्रशासन कान में तेल डाले पड़ा हुआ है और संस्थान के सभी संकायों के शिक्षक इसपर बात करने से साफ़ मना कर देते हैं। उनका कहना है की इस मुद्दे पर हम कुछ नहीं कर सकते और ना ही कोई कमेन्ट देंगे। सारा काम प्रशासन के ज़िम्मे है। अब यह क्या माज़रा है की जिस संस्थान को सूचना और प्रसारण मंत्रालय द्वारा लाखों की फंडिंग मिलती हो और जिसके बारे में यह कहा जाता है की यहाँ हर छात्र पर 3-4 लाख रुपये(10 महीने में) का खर्चा आता है वहां एक अदद लाईब्ररियन की नियुक्ति नहीं हो रही है।
छात्रों से बात करने पर लाइब्रेरी की और कई खामियों के बारे में पता चलता है। मसलन, शेल्फ में रखी किताबों का अस्त-व्यस्त होना, हिंदी पत्रकारिता के लिए कम किताबें, साहित्य के किताबों की कमी, क्लास और लाइब्रेरी के खुलने-बंद होने के समय में टकराव आदि अनेक परेशानियाँ हैं। जब मैंने लाइब्रेरी के एक कर्मचारी राजबीर सिंह डागर से इन मुद्दों पर बातचीत की तो वो कई बातों को टाल गए। काफी सारी बातों के लिए उन्होंने छात्रों को हो ज़िम्मेवार ठहराया। कहा की वे ही किताबें इधर-उधर कर देते हैं। कुछ लोग ऐसा अपनी मनपसंद किताब को छुपाने के लिए भी करते हैं। कई शेल्फों पर स्टिक्कर नहीं लगे होने पर उन्होंने कहा की आगे से इसपर धयान दिया जायेगा।
छात्र कई दिनों से लाइब्रेरी से संबंधित मुद्दे को उठा रहे हैं लेकिन महीनों गुज़र जाने के बाद भी स्थिति में कोई बदलाव नहीं दिखाई दे रहा है। संस्थान को चाहिए की वो अपने नाम और जर्नलिज्म के लिए नंबर एक होने के ब्रांड के साथ न्याय करते हुए लाइब्रेरी को जल्द से जल्द दुरुस्त करे।
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1 टिप्पणी:
आपने अच्छा मुद्दा उठाया है। हमे इसे अपनी वेबसाइट पर प्रकाशित कर रहे हैं। साभार
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