
दशक के अंतिम साल कि सबसे दुखद घटना। माकपा के सबसे वरिष्ठ नेता ज्योति बसु नहीं रहे। इनके बारे में अभी कुछ लिखने का दिल नहीं कर रहा क्योंकि आंखे आंसुओं से भीगी हैं और दिल व्यथित। चर्चा अगली बार करेंगे।
उनकी भी अभिलाषा होती है, जीने की एक खुशनसीब जिंदगी. नहीं मरना चाहते तिल-तिल कर, वो गुमनामी के किसी अँधेरे में. लेकिन उनका भाग्य यही है क्योंकि वो हैं लोकतंत्र की सौतेली संताने, वो हैं एक आम आदमी
1 टिप्पणी:
कामरेड़ ज्योति बसु को लाल सलाम
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