मीरा कुमार को लोकसभा का अध्यक्ष बनाकर भारत के संसदीय इतिहास में एक नई इबारत लिख दी गई है। १५वीं लोकसभा, २००९ का चुनाव जहाँ कांग्रेस के लिए एक नया उत्थान सन्देश लेकर आया वहीँ संसदीय राजनीति का चेहरा भी प्रकाशवान हुआ है। मीरा कुमार के रूप में पहली बार किसी महिला को लोकसभा अध्यक्ष का पद सौंपा गया है। पिछले लोकसभा के अध्यक्ष, सोमनाथ चटर्जी का कार्यकाल अंतिम दिनों में जिस तरह बीता, उसको भुलाने और उसपर मरहम लगाने में शायद यह प्रसंग कुछ काम करे। इंदिरा गाँधी, प्रतिभा पाटिल और किरण बेदी के बाद एक बार फिर नारी सशक्तिकरण का उभार दिखा है। यधपि किरण बेदी का संसदीय राजनीति से जुडाव नहीं था लेकिन उनको इस लीग में शामिल करने का मेरा अपना मत है।
राजनीति और सत्ता प्रतिष्ठान में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने को लेकर काफी बहसें हो चुकी हैं। १५ वीं लोकसभा का चुनाव इस मामले में भी ऐतिहासिक साबित हुआ कि संसदीय राजनीति में महिलाओं कि संख्या आखिकार ५० को पार कर गयी। इस बार कुल ६१ महिलाएं संसद में होंगी। तो क्या सचमुच भविष्य में, संसदीय राजनीति में इनकी प्रभुत्व में इज़ाफा होगा? क्या राजनीतिक पार्टियाँ और जनता इस ग्राह्यता के लिए तैयार हैं? इसी सिक्के के दूसरे पहलु पर गौर करते हैं। इस बार कुल चार सौ उनसठ महिलाएं उम्मीदवार के रूप में खड़ी हुई थीं जिसमे सिर्फ ६१ को ही सफलता मिली। यह आंकड़ा थोड़ी देर को सोचने पर मजबूर भी करता है कि क्या कारण है कि जनता ने बाकी तीन सौ अनठानवे को नकार दिया? क्यों इतने कम स्तर पर सफलता मिली। तो क्या हमें मान कर चलना चाहिए कि लोकतंत्र इस परिवर्तन के लिए इतनी जल्दी तैयार नहीं है? या फिर की आंकड़ें ही सबकुछ नहीं बताते.
एक अनुमान के मुताबिक ग्राम समिति से लेकर लोकसभा तक कुल अड़तीस लाख उम्मीदवार हैं लेकिन इनमें महिलाओं की संख्या लाख दो लाख से ज्यादा नहीं है। इनकी भागीदारी का प्रतिशत हुआ महज़ तीन के आस-पास। संसदीय राजनीति की बात करें तो ५४३ में ६१ उम्मीदवारों का प्रतिशत ११ के आस-पास है। पहले वाले के मुकाबले यह ज्यादा जरूर है लेकिन संतोषजनक नहीं। यह भी उसी लोकतंत्र (बराबरी का?) की विडम्बना है जहाँ बीस बड़े उद्योग घराने देश की जीडीपी के बीस प्रतिशत भाग पर कुंडली मारे बैठें हैं और चौरासी करोड़ लोगों को बीस रुपया प्रतिदिन भी नहीं मिलता है। महिला आरक्षण विधेयक को ही देखिए जो देवगोड़ा के समय से ही लटका पड़ा है। हमेशा इसे या तो पिछले दरवाजे (राज्यसभा) से लाया जाता है या संसद सत्र के ख़त्म होने के समय पर। अब ऐसे में मीरा कुमार का उदाहरण नारी सशक्तिकरण के रूप में कितना कारगर सिद्ध होगा यह तो आने वाला वक़्त ही बताएगा।
लोकतंत्र अन्य सभी शासन प्रणालियों से बेहतर है क्योंकि यह प्रयोगों का घर है। ये प्रयोग इसे जड़ होने से बचाते हैं और इसकी बनाई हुई आस्थाओं को मजबूत करतें हैं। मीरा कुमार का उदाहरण भी इस सन्दर्भ में प्रासंगिक है। परिवारवाद, जातिवाद, सम्प्रदायवाद, धर्मवाद और क्षेत्रवाद के बाद यह एक और सफल प्रयोग है। वैसा ही प्रयोग जैसा मुस्लिमों के साथ होता रहा है। जगजीवन बाबू की बेटी और दलित होना उनके लिए ज्यादा अनुकूल हुआ। बहुजन के लिए कांग्रेस का यह एक बड़ा सन्देश भी है और महिलाओं के लिए तो है ही। वैसे भी संसदीय राजनीति की यह पहचान रही है की परिवर्तन के लिए कुछ ऐसे तत्त्व जरूर होने चाहिए जो जनता के जेहन से जल्दी विस्मृत नहीं हों।
मीरा कुमार और महिलाओं की राजनीतिक भागीदारी को लेकर कांग्रेस का दृष्टिकोण चाहे जो भी हो लेकिन पार्टी ने संसदीय राजनीति में मील का पत्थर तो स्थापित किया ही है। अब पार्टी को चाहिए की वह महिला आरक्षण विधेयक को पास करवाकर एक और मील का पत्थर स्थापित करे और लोकतंत्र को शुभ संकेत दे। इस बार लालू और मुलायम का दबाव भी नहीं है। इन्होनें तो मंडल की मलाई खूब खाई लेकिन बराबरी की बात पर फटाक से उल्टी कर देते हैं। खैर! जनता ने जिस भाव से प्रेरित होकर जनादेश दिया है उसका सकारात्मक उत्तर देना कांग्रेस का कर्तव्य होना चाहिए। मीरा कुमार के बहाने एक शुभ संकेत तो मिल ही चुका है, कांग्रेस को कोशिश करनी चाहिए की मीरा कुमार एक प्रयोग मात्र बनकर न रह जाएँ बल्कि उनकी तरह और परिणाम सामने आएं। प्रयोग परिणाम की सीढ़ी होनी चाहिए एक छलावा नहीं।
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2 टिप्पणियां:
jahan tak baat hai ek mahila ko loksabha adhayaq banane ka to usaki mai swagat karta hu.
per mai is chiz se bilkul sahmat nahi hu ki is baar 61 mahilaon ka loksabha me chuna jana mahila sashaktikaran hai.
agar aap dhyan denge to her mahila ke piche koi na koi purush hai jo razniti ke zuda raha hai to unka razniti me aane ka nirnay bhi unhi purusho dwara liya gaya hai.swayan nirnay se razniti me aane wale mahilaon ki sankhya abhi bhi kam hai. lekin asha hi shakti hai...isliye mai ashatit hu.
aapki baatein bilkul sahi bhi hain aur aankdon par adharit bhi....lekin main to isay sirf ek surwaat man rahi hu,abhi to bahut kuch karna baaki hai....tabhi ho payega asli mahila sashaktikaran....
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